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सहज
Sunday, December 3, 2017
Sunday, October 1, 2017
इतनी सरल कैसे हो प्रिये
इतनी सरल कैसे हो प्रिये !
तुझे देख के हृदय बहने सा लगा।
आंखे तुम्हारी गहरी इतनी,
डूबकर उसमे मन थमने सा लगा ।
तुझे देख के हृदय बहने सा लगा।
आंखे तुम्हारी गहरी इतनी,
डूबकर उसमे मन थमने सा लगा ।
ये मासूमियत की महक,
बोलो कहां से लाती हो ।
कैसे छोटी बातों में ,
बच्चों सी मुस्काती हो ।
बोलो कहां से लाती हो ।
कैसे छोटी बातों में ,
बच्चों सी मुस्काती हो ।
फूल के जैसे खिलीं हुई तुम ,
पत्तो सी लहराती हो ।
सहज सरल बातो में कैसे,
मधु रस घोलती जाती हो ।
पत्तो सी लहराती हो ।
सहज सरल बातो में कैसे,
मधु रस घोलती जाती हो ।
चुप्पी में भी अपनी तुम ,
कितना कुछ कह जाती हो ।
अपने हर रंगों से तुम ,
जीवन को भर जाती हो ।
कितना कुछ कह जाती हो ।
अपने हर रंगों से तुम ,
जीवन को भर जाती हो ।
- वागीश
Saturday, September 30, 2017
शायरी
अब भी तुम सपना लगती हो,
सच है तो ना कभी जगाना।
जो यार मेरे तुम हकीकत हो ,
तो क्यो इतना तड़पाना ।
सच है तो ना कभी जगाना।
जो यार मेरे तुम हकीकत हो ,
तो क्यो इतना तड़पाना ।
शायरी
कइसे बताई तबियत हमार ,
कइसन बुझाता कइसे कहीं।
जवन बाती केवल नयनवा कहेला,
कहेकेबा तोसे मिलत सही।
कइसन बुझाता कइसे कहीं।
जवन बाती केवल नयनवा कहेला,
कहेकेबा तोसे मिलत सही।
शायरी
आपके संगत में हम यूं खराब हो गए।
हमेशा होश में रहते थे, अब शराब हो गए।
पहले जो जीते थे बस यूं ही जीने के लिए,
जबसे तुम मिली हो , हम नवाब हो गए।
हमेशा होश में रहते थे, अब शराब हो गए।
पहले जो जीते थे बस यूं ही जीने के लिए,
जबसे तुम मिली हो , हम नवाब हो गए।
शायरी
रूठ कर हमको ,बैचैन कर देती हो।
कुछ काज नही होता , जब मुँह फेर लेती हो ।
औरोे से क्या , मेरे तो तुम ही हो जमाने में।
फिर भी मज़ा एक और है , तुमको मनाने में।
कुछ काज नही होता , जब मुँह फेर लेती हो ।
औरोे से क्या , मेरे तो तुम ही हो जमाने में।
फिर भी मज़ा एक और है , तुमको मनाने में।
दर्द
इस दर्द का मरहम भी नही था,
दवा ने भी इस जख्म को और दुखाया ।
नींद में कही कुछ सुकून तो था ,
लेटें रहे पूरी रात... नींद कहाँ आया!
उनके चेहरे में चांद देखते थे पहले,
देखकर चांद आज लगा साया।
ये दर्द दे दिया कितना गहरा ,
क्यो कुदरत ने हमको ऐसे मिलवाया ?
दवा ने भी इस जख्म को और दुखाया ।
नींद में कही कुछ सुकून तो था ,
लेटें रहे पूरी रात... नींद कहाँ आया!
उनके चेहरे में चांद देखते थे पहले,
देखकर चांद आज लगा साया।
ये दर्द दे दिया कितना गहरा ,
क्यो कुदरत ने हमको ऐसे मिलवाया ?
शायरी
रंगों ने तो आंखों को रंग दिए,
मेरे महबूब ने रोम-रोम रंग डाला।
मदिरा का नशा तो कुछ पल ही था,
उसने आँखों से पागल कर डाला।
मेरे महबूब ने रोम-रोम रंग डाला।
मदिरा का नशा तो कुछ पल ही था,
उसने आँखों से पागल कर डाला।
Thursday, September 14, 2017
ढूंढ रहा हूँ सच को
ढूंढ रहा हूँ सच को,
सपनो के बाजार में ।
खोज रहा हूँ खुशियों को ,
सिक्का और व्यापार में ।
प्यार में अबतक न डूबा तो ,
क्या जिया संसार में।
मन मेरे तू कितना दौड़े,
कूद जा नील आकाश में ।
जो होता वो उत्तम होता ,
जी ले इस विश्वास में ।
मृत्यु तो आएगी कल को,
क्यो जीना डर के हताश में ।
मृग के भातिं दौड़त मनवा ,
लिए कस्तूरी पास में।
कहॉं मिलेगा वो अमृत रस,
जो गोपीयन के रास में।
-Vagish
सपनो के बाजार में ।
खोज रहा हूँ खुशियों को ,
सिक्का और व्यापार में ।
प्यार में अबतक न डूबा तो ,
क्या जिया संसार में।
मन मेरे तू कितना दौड़े,
कूद जा नील आकाश में ।
जो होता वो उत्तम होता ,
जी ले इस विश्वास में ।
मृत्यु तो आएगी कल को,
क्यो जीना डर के हताश में ।
मृग के भातिं दौड़त मनवा ,
लिए कस्तूरी पास में।
कहॉं मिलेगा वो अमृत रस,
जो गोपीयन के रास में।
-Vagish
Tuesday, September 12, 2017
दुआरे पे निमिया के छाँह जइसे
दुआरे पे निमिया के छाँह जइसे ,
पियासन के बट्टा में जाम जइसे ।
हमके तू करेजा में परान देलु ,
थकल जिनगी में विराम देलु ।
बिसर गइनी चतुराई सबहुँ ,
जोड़ घटाना.. पंचाइत सब।
मिलिके तोहसे जब बतियवानी,
पिरीत (love) के रस बुझाइल तब।
बिरह के पीरा ..रेती जइसे चुभे,
निंदिया न आवे, जग सूती सब ।
शिपी जइसन गला के खुद के
रेत के बना लिहनी मोती तब ।
-वागीश
पियासन के बट्टा में जाम जइसे ।
हमके तू करेजा में परान देलु ,
थकल जिनगी में विराम देलु ।
बिसर गइनी चतुराई सबहुँ ,
जोड़ घटाना.. पंचाइत सब।
मिलिके तोहसे जब बतियवानी,
पिरीत (love) के रस बुझाइल तब।
बिरह के पीरा ..रेती जइसे चुभे,
निंदिया न आवे, जग सूती सब ।
शिपी जइसन गला के खुद के
रेत के बना लिहनी मोती तब ।
-वागीश
Friday, September 8, 2017
जब तुम रोटी मांगोगे
जब तुम रोटी मांगोगे ,
वो जाति खतरे में है कहेंगे।
जब नौकरी मांगोगे तो ,
अल्लाह, राम की याद दिला देंगे।
बेरोजगार जवानो से ,
वे अपना काम चलवाएंगे।
जो अकेला था और सोचता था ,
उसी भीड़ बना देंगे।
वो तुम्हे वोही दिखाएंगे जो वो चाहेंगे ,
झूठी खबरों का चश्मा चढ़ाएंगे।
जब तुम हक़ की मांग करोगे तो ,
वो तुम्हे स्मारक और पार्क बना देंगे।
जिसे नींद नहीं आती ,
उसको भी सपने दिखाएंगे।
फिर जब वापस चुनाव आएगा ,
तो लाउडस्पीकर पे जिंगल बजवायेंगे।
जिंगल बदल जायेगा ,
मुखौटा बदल जायेगा।
यही चलता रहेगा जबतक ,
तुम नहीं सोचोगे, तुम नहीं टोकोगे ।
-वागीश
वो जाति खतरे में है कहेंगे।
जब नौकरी मांगोगे तो ,
अल्लाह, राम की याद दिला देंगे।
बेरोजगार जवानो से ,
वे अपना काम चलवाएंगे।
जो अकेला था और सोचता था ,
उसी भीड़ बना देंगे।
वो तुम्हे वोही दिखाएंगे जो वो चाहेंगे ,
झूठी खबरों का चश्मा चढ़ाएंगे।
जब तुम हक़ की मांग करोगे तो ,
वो तुम्हे स्मारक और पार्क बना देंगे।
जिसे नींद नहीं आती ,
उसको भी सपने दिखाएंगे।
फिर जब वापस चुनाव आएगा ,
तो लाउडस्पीकर पे जिंगल बजवायेंगे।
जिंगल बदल जायेगा ,
मुखौटा बदल जायेगा।
यही चलता रहेगा जबतक ,
तुम नहीं सोचोगे, तुम नहीं टोकोगे ।
-वागीश
रूठो न तुम हमसे
रूठो न तुम हमसे,
यूं हमपे कहर न ढाओ।
कुछ गलती जो हो जाये,
तानों से न बतियाओ।
यूं हमपे कहर न ढाओ।
कुछ गलती जो हो जाये,
तानों से न बतियाओ।
बाबू हु मैं तुम्हारा ,
कुछ गलती तो होगी ।
मेरी शोना समझ भी जाओ ,
आखिर हु मैं तुम्हारा जोगी।
कुछ गलती तो होगी ।
मेरी शोना समझ भी जाओ ,
आखिर हु मैं तुम्हारा जोगी।
तुम ही कवि की कल्पना
तुम ही कवि की कल्पना हो ,
हर गीत की तुम प्रेरणा।
फूलों में गुलाब तुम हो ,
हर भँवरा चाहे छेड़ना ।
हर गीत की तुम प्रेरणा।
फूलों में गुलाब तुम हो ,
हर भँवरा चाहे छेड़ना ।
याद करना तुमको
अब इबादत सी हो गयी ।
तुमको सुनते ही रहना
आदत सी हो गयी ।
अब इबादत सी हो गयी ।
तुमको सुनते ही रहना
आदत सी हो गयी ।
सफर में साथ जो तुम हो ,
तो मंजिल की क्यों फिकर।
जब रब ही साथ मे चले ,
तो मंदिर की क्यों जिकर ।
तो मंजिल की क्यों फिकर।
जब रब ही साथ मे चले ,
तो मंदिर की क्यों जिकर ।
-वागीश
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