Saturday, April 22, 2017

Random

जब से उम्मीदों का बोझ उतार फेंका है,
लोगो से अब मुझे कोई शिकायत नही रही।

-वागीश


Saturday, April 15, 2017

कलयुग

इस पथरीली दुनिया मे ,
गिरकर उठाना फिर संभालना ,
कौन सिखाएगा हमको।
इन कांटो भारी राहों में ,
बिन चप्पल के पाँवों में,
छालों के उस दर्द को कौन मिटाएगा।

इस मतलब की दुनिया में,
मतलब के सब यार हैं।
इस कलयुग के द्वार पर ,
पैसा ही बस प्यार है ।
श्रम ही एक सहारा है ,
दूजा न कोई हमारा है ।


यहां बगुले हंस से दिखते है ,
कौए भी कूँ कूँ करते है ।
कोयल का मौन सहारा है ,
दादुर ही टर्र टर्र बकते है ।

यहां अंधकार के सामने ,
दीपक की लौ रोटी है ।
शैतानो से संघर्ष के डर,
विभूतिया भी सोतीं हैं।

इन शैतानो की दुनिया मे ,
गरीबों का शोषण होता है ।
इनकी मर्यादा का अंत नही,
लाशों का भी भक्षण होता है।

यहां गला काट स्पर्धा है,
पूजा भी यहां एक धंधा है ।
भाईचारा तो दूर की बात ,
मानवता भी मंदा है ।

यहां गधे दहाड़ लागतें हैं,
भैसे भी सरगम गातें है ।
राजनीति का बोलबाला है ,
सबका छवि निराला है ।

2005

सावन

सावन वर्षा बरखा आया,
लेकर गंध सुहानी।
आया झोंक पवन का ऐसा ,
लेकर रिमझिम पानी।
ऐसा सावन देख सुहाना ,
लोगो का मन खिल आया ।
सखियों ने मिलकर मधुरमय,
सावन का गाना गाया।
मोर भी अपने पंख उठाकर ,
लगे नाचने गाने।
बच्चे झुंड बनाकर चलें ,
गलियारों में नहाने।
पपीहा भी संतुष्ट हुआ ,
धरती ने प्यास बुझाई।
चीटियों ने बारात निकाली ,
दादुर ने ली अंगड़ाई ।

2005

हमारे दो मन

हमारे दो मन,
एक शांत है , एक अशांत है ।
दोनों का विपरीत दर्श,
होता है इनमे संघर्ष।

एक पुण्य है,
एक पाप है ।
एक आशीष तो ,
एक अभिशाप है ।

एक का है मत यही ,
उन्नति में सब सही ।
दुसरो का हक छीन तू ,
चोरी धोखेबाज़ी से।
सम्मान, धन धान्य मिलेगा,
तुझको जालसाज़ी से ।

दूसरा निष्कपट निर्मल ,
सत्य का है वह समर्थक।
परमहित को समझे वो सबकुछ ,
सम्मान धन सब है निरर्थक ।

दोनों मन है दुश्मन ऐसे ,
आग-पानी रहते है जैसे।
अशांति और लालच चाहिए,
या शांति अनुराग प्यार ।
किसका चयन किसका मरण,
हमपर ही निर्भर मेरे यार ।

2005

Random

अगर तुझमे दुख है ,
तो अस्पतालों की तरफ रुख ले ।
अगर तुझमे अशांति है ,
तो मैखानो का कर ले दर्श।

संतोष तुझमे है अगर
 तो जीवन हास्य मंच है।
न खुद को समझ असमर्थ तू ,
तू राम कृष्ण का अंश है।

हर जीव में है गुन छुपा ,
बस खोजने की देरी है ।
कुछ खोया है , कुछ पायेगा ,
इस जग में हेराफेरी है ।

2005

प्रयास

असफलता मिले तो क्या,
हर प्रयास व्यर्थ नही होता।
अगर जीवन मे सिर्फ सफलता है,
तो जीवन का अर्थ नही होता।

हर प्रयास में एक ज्ञान है,
नाइ त्रुटियों का भान है ।
उन त्रुटियों से सीखकर ,
अगर हम पुनः करें प्रयास ।
तब हमें यकीनन मिलेगा ,
मन प्रिय अभिलाष ।

2005

Random

हे खुदा मुझको बता, 
ये दर्द ,तन्हा, दुख, अशांति ,
मुझे ही क्यों, मुझे ही क्यों।
ये घनघोर अंधेरा, बदनसीबी का घेरा,
मुझे ही क्यों, मुझे ही क्यों।

खुदा मुझे खुशियों की बहार दे, 
हाथ मे व्यवहार दे।
दे अगर तुझमे है दम , 
मुझे लोगो क्या प्यार दे।

जब दुख आया तो याद किया,
खुशोयों में तूने नकार दिया।
तेरा ये रंग बदलना मुझे रास न आया,
और तू मुझसे मांगने चला आया।

तेरे पास दो वक्त की रोटी है ,
कई ऐसीं है जो पेट काटकर सोती है।
दर्द देखना है अस्पतालों में जा,
अशांति देखनी है तो मैखानो में जा।

इच्छा और मनोकामना से,
जीवन मे सिर्फ निराशा है। 
सुख शांति सम्मान का
संतोष ही परिभाषा है। 

2005



नैनन में नही है प्यास...

नैनन में नही है प्यास इतनी,
कैसे तुझे बुलाऊँ मैं।
नही भक्ति भाव है इतना प्रबल,
की तुझमे लीन हो जाऊ मैं।
बस तेरी कृपा हो हे प्रभुवर ,
यह आस लगाए बैठा हूँ।

क्या मंजिल है, कहां  साहिल  है,
एक झलक तो हमको दिखला दे।
कर एक कृपा तू और प्रभु,
हमको गुरुवर से मिलवा दे।

-वागीश




मैं अनभिज्ञ...

मैं अनभिज्ञ अलक्षित ,
मुझको पथ का कोई ज्ञान नही।
मैं रेगिस्तान में गुमराह पथिक सा,
अज्ञात लक्ष्य के पीछे भाग रहा प्रतिस्पर्धिक सा।
बीच समंदर नौका पे आसीन ,
जहा है कोई पार नही।
कलयुग के इस रंगमंच में,
मेरे नाटक का कोई सार नही।

3/11/2005
-वागीश





Friday, April 14, 2017

ऐ चिरई....

ऐ चिरई तू कइसे उडेलू भर अकाशवा ,
कैसे बाड़ू इतना निडर परान ।
काल के नाही फिकर तोके कुछु बा ,
इंहा लाख जतन कइनी, फिर भी हैरान।

पतई के खोतावा के कुछु भरोसा नही,
तबो तू उडेलू, बिन फिकर निवांत।
बनाके घर मटिया के, लोहा के आधार दे,
गदिया पे सुतेनी , फिर भी मनवा अशांत।

नाही सोचेनी परसो के , नही काल बरसो के,
होला जौन आज ,  करके गावेनि मल्हार।
खोतवा भले उड़े, तबो पेड़वा , अकाशवा बा,
नाही कौनो दौड़ हमके, इह जीवनवा त्योहार।

~ वागीश


Sunday, April 9, 2017

चाय

कुछ चाय ठहाके बांते हों ,
कुछ बेमतलब मुलाकातें हो।
किसी एक मुद्दे की कोई बात न हो,
इस संझा की अब रात न हो।


Dhanyawaad

है मेरे चित्त के धरा पे तूने आग लगा दी , 
मेरे उपवन में जो भी था ,वो उझाड़ दिया।

कुछ नहीं बचा , जिसे मेरा - अपना बोल सकूँ, 
लेकर सबकुछ, अल्लाह तूने उपकार किया।


Saturday, April 8, 2017

गुरु

लगाये पार भवसागर को,
खेवत नाव बीच भँवर में ।
ऐसा ही गुरु मेरा मल्लाह,
लड़त रहत पुरज़ोर लहर से।

मैं तो बैठा केवल ताकू ,
कैसे न डूबू , कुछ न जाना।
मेरा केवट ऐसा दरिया ,
सीखा दी हमको भी नाव खेवाना।

-वागीश

आशिक होकर सोना क्या रे!

आशिक होकर सोना क्या रे!
समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!
जिस नगरी में दया धरम नाही!
उस नगरी में रहना क्या रे!

समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!

रूखा सूखा गम का टुकड़ा ,
चिकना और सलोना क्या रे!
चिकना और सलोना क्या रे!

समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!

पाया हो तो दे ले प्यारे !
पाया हो तो दे ले प्यारे !
पाय पाय फिर खोना क्या रे!
आशिक होकर सोना क्या रे!

समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!

जिन आँखों में नींद घनेरी !
तकिया और बिचौना क्या रे !
समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!

कहीं कबीर सुनो भाई साधो!
शीश दिया फिर रोना क्या रे!
शीश दिया फिर रोना क्या रे!

समझ देख मनमीत पियरवा!
आशिक होकर सोना क्या रे!
आशिक होकर सोना क्या रे!
आशिक होकर सोना क्या रे!
सोना क्या रे!
https://youtu.be/vbzCSvCUizY