Sunday, March 26, 2017

तू ही तू

नित नित , पल पल तू ही तू है ,
पथ पथ , घट घट तू ही तू है ।
नयन - दृश्य में , नाद - गंध में ,
तन में , मन में , धन में तू है ।
मृत्यु में तू , अभिमान में तू है।
भुत भविष्य वर्तमान में तू है,
काल भी तू , विकराल भी तू है।
तू पापी में , तू चोरो में।
तू योगी में , तू भोगी में ।
तू है धनी में , तू निर्धन में,
दमन भी करता , दान भी देता,
चोरी कर के , पकड़ भी लेता।
तू ही सखा है , तू ही दुश्मन ,
मदर करे तू, तू संकट दे ।
तू ही हंसाये , तू ही रुराये ,
करे अनाथ , और तू ही पाले ।
राम भी तू , रावण भी तू ,
भादो तू ,सावन भी तू।
अमावस का तू घोर अँधेरा,
सूरज का प्रकाश भी तू है।
तारो की जगमग में तू है ,
भवरों की गुंजन में तू।
तेरा प्रपंच तेरी है लीला
तू ही दर्शक तू ही खेला
तू ही हारे, जीते भी तूही ,
तू ही मनाये , रूठे भी तू ही।
तेरे होने से ही माया ,
काम , क्रोध, मद, लोभ ।
तेरे होने से ही मुक्ति
योग , समाधी , भोग ।
सब चलत है , तेरे होने से,
समझत भी तू , भटकत भी तू।

- वागीश (३१ अक्टूबर २०१६  )

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