सहज
Sunday, March 26, 2017
क्या होता जो
क्या होता जो नंगे होते,
क्या होता तो छत पे सोते।
हर पीड़ा में रो लेते हम,
पास नदी में खा लेतें गोते।
क्या होता जो चाह न होती,
लोगों की परवाह न होती।
प्रतिस्पर्धा में फस न जातें,
खुद के "मैं"पन से मर जातें।
क्या होता जो कोई जात न होती,
धर्म - राजनीती की बात न होती।
ज्ञान भ्रम से हटकर जो हम,
नित जीवन प्रवाह में होतें।
- वागीश (१ जनवरी २०१७ )
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