Sunday, October 1, 2017

इतनी सरल कैसे हो प्रिये


इतनी सरल कैसे हो प्रिये !
तुझे देख के हृदय बहने सा लगा।
आंखे तुम्हारी गहरी इतनी,
डूबकर उसमे मन थमने सा लगा ।
ये मासूमियत की महक,
बोलो कहां से लाती हो ।
कैसे छोटी बातों में ,
बच्चों सी मुस्काती हो ।
फूल के जैसे खिलीं हुई तुम ,
पत्तो सी लहराती हो ।
सहज सरल बातो में कैसे,
मधु रस घोलती जाती हो ।
चुप्पी में भी अपनी तुम ,
कितना कुछ कह जाती हो ।
अपने हर रंगों से तुम ,
जीवन को भर जाती हो ।

- वागीश