मैं आज़ाद छोड़ता हु तुमको ,
तेरे पंखों के करतब दिखला।
कब तक जियेगा कृमिकोष में,
निकल जरा तितली बन जा।
उड़ जा तू अज्ञात गगन में,
कर ले जो तू आये मन में।
अब यादों से मत जीना तू,
इस पल जो भाये पीना तू।
राह वाही चल जो लगे नविन ,
पुराना सब दे त्याग हिन।
बंधन नहीं कोई तुझपे अब,
पाप पुण्य से न कोई मतलब।
जो स्वयं के पास ले जाये ,
वाही कर्म सदा करना तू ।
जीवन सहज सरल है,
खुद से न कभी लड़ना तू ।
- वागीश (४ जनवरी २०१७ )
No comments:
Post a Comment