मेरा रूह रूह पुकारे,
मेरा रोम रोम झनकारे।
मई तो मन से जान न पाया ,
मन हारा , अब तो दरश दिखा रे।
खुशबू की गंध बहुत ली,
अब फूल का रूप दिखा दे।
लिए सागर घट में बैठा,
इस प्यासे का भरम मिटा दे।
मुझे अपने आगोश ले , कर दे फनाह,
मेरी हस्ती मिटा , मुझे कर दे तबाह।
बहने दो हरपल निर्झर सा,
इस जीवन को अब तू ही चला।
- वागीश (११ मार्च २०१७ )
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image courtesy: Google search (Parvathy Baul) |
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