Sunday, March 26, 2017

SURRENDER

आज फिर वो टूट गया , जो कल सायना था,
वक्त की चोट से भला कौन बचा है ।
कल अकड़ में जो चला था दुनिया बदलने को,
आज वो चादर लिए मजार पे खड़ा है ।
इस द्वैत की माया का तनिक भी भरोसा क्या,
क्षण  धुप पल छांव जीवन है अनोखा सा।
बस पात्र बन जाओ , स्वतंत्र भान हो हरदम,
तुमको बना के वाद्य , छेड़े कुदरत ही सब सरगम।

- वागीश (८ जनवरी २०१७ )

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