आज फिर वो टूट गया , जो कल सायना था, वक्त की चोट से भला कौन बचा है । कल अकड़ में जो चला था दुनिया बदलने को, आज वो चादर लिए मजार पे खड़ा है ।
इस द्वैत की माया का तनिक भी भरोसा क्या, क्षण धुप पल छांव जीवन है अनोखा सा। बस पात्र बन जाओ , स्वतंत्र भान हो हरदम, तुमको बना के वाद्य , छेड़े कुदरत ही सब सरगम।
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