इतनी सरल कैसे हो प्रिये !
तुझे देख के हृदय बहने सा लगा।
आंखे तुम्हारी गहरी इतनी,
डूबकर उसमे मन थमने सा लगा ।
तुझे देख के हृदय बहने सा लगा।
आंखे तुम्हारी गहरी इतनी,
डूबकर उसमे मन थमने सा लगा ।
ये मासूमियत की महक,
बोलो कहां से लाती हो ।
कैसे छोटी बातों में ,
बच्चों सी मुस्काती हो ।
बोलो कहां से लाती हो ।
कैसे छोटी बातों में ,
बच्चों सी मुस्काती हो ।
फूल के जैसे खिलीं हुई तुम ,
पत्तो सी लहराती हो ।
सहज सरल बातो में कैसे,
मधु रस घोलती जाती हो ।
पत्तो सी लहराती हो ।
सहज सरल बातो में कैसे,
मधु रस घोलती जाती हो ।
चुप्पी में भी अपनी तुम ,
कितना कुछ कह जाती हो ।
अपने हर रंगों से तुम ,
जीवन को भर जाती हो ।
कितना कुछ कह जाती हो ।
अपने हर रंगों से तुम ,
जीवन को भर जाती हो ।
- वागीश
सुन्दर प्रस्तुति वागीश जी। सादर आग्रह के साथ निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों और अपने ब्लॉग पर अनुशरणकर्ता का विजेट भी लगाएं -
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का लिंक www.rakeshkirachanay.blogspot.com