Sunday, March 26, 2017

ना दौलत में, न सोहरत में

ना दौलत में, न सोहरत में,
न भुत, भविस्य काल में।
न पद में, न प्रशंसा में ,
असली सुख मिलेगा राम में।
काम , क्रोध ने खूब नचाया,
माया ने भी खूब लुभाया।
इस चक्कर को छोड़ रे मनवा,
अब तो रम जा राम में ।
भवसागर में गोते खाता,
दो पाटन में पिसता जाता।
अब तो चढ़ जा गुरु की नौका,
पार लगाएंगे राम रे।
कितना भी कोशिश कर ले,
बाहर में न ढूंढ सकेगा।
न पूजा, न कर्मकांड में,
वो तो हृदय के वास में।

- वागीश


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