सहज
Sunday, March 26, 2017
ROBOT LIFE
है कितने अरमान लिए,
नित पल बुनते ख्वाब नए।
मन को मार के कुछ न मिला,
उठता फिर वो उफान लिए।
बन के पथिक कुछ भी न मिला,
स्मृति, कल्पना का बोझा ढ़ोते चलें।
करके कितना देखा अबतक,
हम वर्तमान को खोते चलें।
क्या पाना कुछ जाना नहीं ,
बदलूंगा खुद को उनकी तरह।
मेरा जीवन दर्पण देखा न कभी ,
चलता अब इंजन की तरह।
- वागीश (१८ दिसम्बर २०१६ )
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