इस अकेलेपन में मै , अवाक् रह गया,
मिला एक ठहराव , जब खुद से रूबरू हुआ।
मिलता न था खुद से , तन्हाई से डरता था,
पर कबसे लिए बक्शीस वो दरख्त पे खड़ा था।
अब सांसो में बसता हु, खुद में मस्त रहता हूं,
सागर लिए घट में, जो पल पल भटकता था।
- वागीश (३ दिसम्बर २०१६ )
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