Saturday, April 15, 2017

कलयुग

इस पथरीली दुनिया मे ,
गिरकर उठाना फिर संभालना ,
कौन सिखाएगा हमको।
इन कांटो भारी राहों में ,
बिन चप्पल के पाँवों में,
छालों के उस दर्द को कौन मिटाएगा।

इस मतलब की दुनिया में,
मतलब के सब यार हैं।
इस कलयुग के द्वार पर ,
पैसा ही बस प्यार है ।
श्रम ही एक सहारा है ,
दूजा न कोई हमारा है ।


यहां बगुले हंस से दिखते है ,
कौए भी कूँ कूँ करते है ।
कोयल का मौन सहारा है ,
दादुर ही टर्र टर्र बकते है ।

यहां अंधकार के सामने ,
दीपक की लौ रोटी है ।
शैतानो से संघर्ष के डर,
विभूतिया भी सोतीं हैं।

इन शैतानो की दुनिया मे ,
गरीबों का शोषण होता है ।
इनकी मर्यादा का अंत नही,
लाशों का भी भक्षण होता है।

यहां गला काट स्पर्धा है,
पूजा भी यहां एक धंधा है ।
भाईचारा तो दूर की बात ,
मानवता भी मंदा है ।

यहां गधे दहाड़ लागतें हैं,
भैसे भी सरगम गातें है ।
राजनीति का बोलबाला है ,
सबका छवि निराला है ।

2005

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