ऐ चिरई तू कइसे उडेलू भर अकाशवा ,
कैसे बाड़ू इतना निडर परान ।
काल के नाही फिकर तोके कुछु बा ,
इंहा लाख जतन कइनी, फिर भी हैरान।
पतई के खोतावा के कुछु भरोसा नही,
तबो तू उडेलू, बिन फिकर निवांत।
बनाके घर मटिया के, लोहा के आधार दे,
गदिया पे सुतेनी , फिर भी मनवा अशांत।
नाही सोचेनी परसो के , नही काल बरसो के,
होला जौन आज , करके गावेनि मल्हार।
खोतवा भले उड़े, तबो पेड़वा , अकाशवा बा,
नाही कौनो दौड़ हमके, इह जीवनवा त्योहार।
~ वागीश
कैसे बाड़ू इतना निडर परान ।
काल के नाही फिकर तोके कुछु बा ,
इंहा लाख जतन कइनी, फिर भी हैरान।
पतई के खोतावा के कुछु भरोसा नही,
तबो तू उडेलू, बिन फिकर निवांत।
बनाके घर मटिया के, लोहा के आधार दे,
गदिया पे सुतेनी , फिर भी मनवा अशांत।
नाही सोचेनी परसो के , नही काल बरसो के,
होला जौन आज , करके गावेनि मल्हार।
खोतवा भले उड़े, तबो पेड़वा , अकाशवा बा,
नाही कौनो दौड़ हमके, इह जीवनवा त्योहार।
~ वागीश
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