Saturday, April 15, 2017

मैं अनभिज्ञ...

मैं अनभिज्ञ अलक्षित ,
मुझको पथ का कोई ज्ञान नही।
मैं रेगिस्तान में गुमराह पथिक सा,
अज्ञात लक्ष्य के पीछे भाग रहा प्रतिस्पर्धिक सा।
बीच समंदर नौका पे आसीन ,
जहा है कोई पार नही।
कलयुग के इस रंगमंच में,
मेरे नाटक का कोई सार नही।

3/11/2005
-वागीश





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