Saturday, April 8, 2017

गुरु

लगाये पार भवसागर को,
खेवत नाव बीच भँवर में ।
ऐसा ही गुरु मेरा मल्लाह,
लड़त रहत पुरज़ोर लहर से।

मैं तो बैठा केवल ताकू ,
कैसे न डूबू , कुछ न जाना।
मेरा केवट ऐसा दरिया ,
सीखा दी हमको भी नाव खेवाना।

-वागीश

No comments:

Post a Comment