हर मौसम देख ली मैंने, हर हाल-ए-समय जरूरी था।
तेज बयार, धुप औ आंधी ये भी आना जरूरी था।
मेरी जड़े गहरी न होती, जो आसानी से जल मिल जाता।
मेरे तने इतने सख्त न होते, जो मार हवा का न खाता।
पत्तो की हरियाली भी तेज तपन से आई है।
पतझड़ झाड़ के चल तो दिया, फिर बसंत ने कली खिलाई है।
-वागीश
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