आज भी निहारती हूँ ,
उस अंधेरे कमरे में बैठ कर ,
जहां केवल अंधेरा है , वही अंधेरा जो मेरे चित्त और भविष्य पर छाया हुआ है ,
अब अंधेरे की मायूसी ठहाको से ज्यादा सुकून देती है ।
तुम्हारे इंतजार की इतनी आदत हो गई , कि अब तुम्हारे आने की आशा भी नही।
यह कोई depression नही, न ही कोई शिकायत है तुमसे |
तुम न भी रहो तो याद में जी लेंगे ,
कबूल न भी हो तो भी ,फरियाद में जी लेंगे |
पि लेंगे हम सारे तनहाई के गम ,
क्या देखा जमानां बड़ा इससे सितम |
उस अंधेरे कमरे में बैठ कर ,
जहां केवल अंधेरा है , वही अंधेरा जो मेरे चित्त और भविष्य पर छाया हुआ है ,
अब अंधेरे की मायूसी ठहाको से ज्यादा सुकून देती है ।
तुम्हारे इंतजार की इतनी आदत हो गई , कि अब तुम्हारे आने की आशा भी नही।
यह कोई depression नही, न ही कोई शिकायत है तुमसे |
तुम न भी रहो तो याद में जी लेंगे ,
कबूल न भी हो तो भी ,फरियाद में जी लेंगे |
पि लेंगे हम सारे तनहाई के गम ,
क्या देखा जमानां बड़ा इससे सितम |
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