Friday, August 11, 2017

मेरे मन

मेरे अपने मन सुन ले, 
तू खूब गाना, बेसुरा ही सही।
इतिहास को पढ़ना और भूल जाना।
राहो पर चलना और 
अनुभव को नाम मत देना, बस जीना।
तू वो सब कर के देख लेना जो नया लगें,
चहरों को पढ़ना, वो बदलती किताबें है।
आंखों में झांक लेना किसी के,
कुछ छुपा हुआ ही दिख जाए?
किसी के साथ हंस लेना,
किसी के साथ रो लेना।
भुलक्कड़ ही रहना।
यादों के सहारे , और कल की अभिलाषा ,
दोनों ही सफर को बोझिला बना देगी ।
हल्के और नंगे ही सफर करना,
हीरा बनो न बनो , आईना बन जाना ।
जीवन मे अजनबी ही रहना,
और छोटे छोटे आंनद के क्षणों को भर के जीना।
अकेले बैठ के कभी तारों को ताकना,
और सुनना कायनात के संगीत को ।
खुद को बदलने का प्रयास मत करना,
सिर्फ देखते रहना अपने नाच को।
सफर जो है कायनात का है ,
तुम कोई विशेष नही , सब साथ बहेंगे ।
ठहराना जब भी मौका मिले ,
आराम खूब करना ।
चलना , भटकना मगर ,
किसी के पीछे मत हो लेना।


-वागीश   aug  -17 

Saturday, August 5, 2017

सखी पिया को जो मैं न देखूं

सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां
कि जिन में उनकी ही रोशनी हो कहीं से ला दो मुझे वो अंखिया

दिलों की बातें दिलों के अन्दर जरा सी जिद से दबी हुई हैं
वो सुनना चाहें जुबां से सब कुछ मैं करना चाहूं नजर से वतियां

ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है 
सुलगती सासें, तरसती आंखें, मचलतीं रूहें धड़कती छतियॉं

उन्हीं की आंखें, उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की खुशबू 
किसी भी धुन में रमाउं जियरा किसी दरश में पिरोलू अखियां

में कैसे मानूं बरसते नैनो कि तुमने देखा है पी को आते 
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूंकी कोयल, न चटकी कलियां

सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां...............

—आलोक श्रीवास्तव (Alok Shrivastav)