सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां
कि जिन में उनकी ही रोशनी हो कहीं से ला दो मुझे वो अंखिया
दिलों की बातें दिलों के अन्दर जरा सी जिद से दबी हुई हैं
वो सुनना चाहें जुबां से सब कुछ मैं करना चाहूं नजर से वतियां
ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है, ये इश्क क्या है
सुलगती सासें, तरसती आंखें, मचलतीं रूहें धड़कती छतियॉं
उन्हीं की आंखें, उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की खुशबू
किसी भी धुन में रमाउं जियरा किसी दरश में पिरोलू अखियां
में कैसे मानूं बरसते नैनो कि तुमने देखा है पी को आते
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूंकी कोयल, न चटकी कलियां
सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां...............
—आलोक श्रीवास्तव (Alok Shrivastav)
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