Saturday, September 30, 2017

शायरी

रूठ कर हमको ,बैचैन कर देती हो। 
कुछ काज नही होता , जब मुँह फेर लेती हो ।
औरोे से क्या , मेरे तो तुम ही हो जमाने में। 
फिर भी मज़ा एक और है , तुमको मनाने में।

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