Sunday, March 26, 2017

विरह गीत

काहे भइले इतना सखी , कौन क्याब खोयल बाड़ू,
केकरा के रंग रास में तू , भूक प्यास के भुलल बाड़ू।
पल पल मारेलू किलकारी, अब कुछू बोले नाही,
कौन रोग धरले बा सखी के, अब डोले नहीं ।
रोग नहीं सखी हमके, नाही कौनों मरम बाटे,
लोग चाहे पागल कहें , नहीं कुछ सरम बाटे,
गोदना गोदायी लिहनी ,उनकर नाम हम कलाई पे,
धरीं बाट दिन-रात, कर शृंगार , मेहँदी लगाइके।
झुलाना, घूमना हमके नाही अब भावेला,
उठी - सुति खली उनकर बिचार अब आवेला।
सावन हो, भादो हो, रोपना , कटाई,
रही रही खाली उनकर याद हमके खाई।
मांगू दुहाई काली माई से , तू इससे दूर रहा,
प्यार भइल जब भी, कबहु झेल न बिरहा।

- वागीश (२४ जनवरी २०१७ )


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