Saturday, April 15, 2017

हमारे दो मन

हमारे दो मन,
एक शांत है , एक अशांत है ।
दोनों का विपरीत दर्श,
होता है इनमे संघर्ष।

एक पुण्य है,
एक पाप है ।
एक आशीष तो ,
एक अभिशाप है ।

एक का है मत यही ,
उन्नति में सब सही ।
दुसरो का हक छीन तू ,
चोरी धोखेबाज़ी से।
सम्मान, धन धान्य मिलेगा,
तुझको जालसाज़ी से ।

दूसरा निष्कपट निर्मल ,
सत्य का है वह समर्थक।
परमहित को समझे वो सबकुछ ,
सम्मान धन सब है निरर्थक ।

दोनों मन है दुश्मन ऐसे ,
आग-पानी रहते है जैसे।
अशांति और लालच चाहिए,
या शांति अनुराग प्यार ।
किसका चयन किसका मरण,
हमपर ही निर्भर मेरे यार ।

2005

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