Tuesday, May 30, 2017

कितने बंधन माया के ...

पल पल फांद लिए बैठा है 
भरम में बांध लिए बैठा है। 
वैभव रस में मन बहका  , 
और भोग लपेटे काया के। 
कितने जन्मो भटके साधु , 
कितने बंधन माया के। 

औरन क्या सोचे तुमरे को ,
फ़ौरन क्या मिल जावे हमको। 
उमर जवानी सारा गवांया,
भाग के पीछे साया के।  
कितना जोड़े , कितना बनाया 
कितने बंधन माया के।

जशन मनाया , रोया-गाया ,
द्वैत ने भाई खूब नचाया।
मृत्यु से ही छूटेंगे अब क्या ?
कोई जीते जी मर पाया के?
इस चक्कर से राम छुड़ाए,
कितने बंधन माया के।

-वागीश







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