Monday, May 22, 2017

और हाथों में कंचे थे..

हाथों में बॉल बैट ,
दोपहर की तड़कती धूप,
आठने की पेप्सी,
चारने की लमचूस।

सक्तिमान की पोशाख,
अलादीन का चिराग ,
आहट का खौफ,
अंताक्षरी का राग ।

वो दिन भी कितने अच्छे थे,
जब हम छोटे बच्चे थे ।
जेबो में सितारें  थे ,
और हाथों में कंचे थे।

वो बचपना अभी भी हैं,
वही हँसना अभी भी है।
बड़े भले हो काया से,
वह छोटू मोटू अभी भी है।

२२/५/२०१७ 

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