Friday, September 8, 2017

जब बारिश थी घनगोर

जब बारिश थी घनगोर ,
मैं छाता भूल गया था।
जिस माटी से सपनें बनानेें,
पानी में घुल गया था।
जब जीना था जीवन तो ,
मैं पैसे बटोर रहा था।
जाना था कहीं और पर,
गया जहाँ होड़ मचा था।
कहा दिल का न माना,
औरों की सुन रहा था।
जिस दिन था मिलना उनसे,
ऑफिस में घुन रहा था।

- vagish

No comments:

Post a Comment