पल पल फांद लिए बैठा है
भरम में बांध लिए बैठा है।
वैभव रस में मन बहका ,
और भोग लपेटे काया के।
कितने जन्मो भटके साधु ,
कितने बंधन माया के।
औरन क्या सोचे तुमरे को ,
फ़ौरन क्या मिल जावे हमको।
उमर जवानी सारा गवांया,
भाग के पीछे साया के।
कितना जोड़े , कितना बनाया
कितने बंधन माया के।
जशन मनाया , रोया-गाया ,
द्वैत ने भाई खूब नचाया।
मृत्यु से ही छूटेंगे अब क्या ?
कोई जीते जी मर पाया के?
इस चक्कर से राम छुड़ाए,
कितने बंधन माया के।
-वागीश
जशन मनाया , रोया-गाया ,
द्वैत ने भाई खूब नचाया।
मृत्यु से ही छूटेंगे अब क्या ?
कोई जीते जी मर पाया के?
इस चक्कर से राम छुड़ाए,
कितने बंधन माया के।
-वागीश